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झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन बुधवार को नियोजन नीति का मुद्दा गरम रहा। इस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि नियोजन नीति रद्द होने के कारण छात्र धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन उनके भविष्य की मुझे चिंता है। हर हाल में विधि सम्मत, संवैधानिक रूप से बेहतर रास्ते पर सरकार आगे बढ़ेगी। नौजवान जो चाहेंगे उसी के अनुरूप नियोजन नीति बनेगी। बहुत जल्द निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि नियोजन नीति के खिलाफ शिकायत करने वाले दूसरे राज्यों के लोग थे।
बौद्धिक विकास की दिशा में कार्य कर रही सरकार
बौद्धिक विकास की दिशा में सरकार कर रही काम सीएम ने कहा कि नियोजन नीति रद्द होने की खबर मिलते ही चर्चा शुरू हो गई। कई बातें आ रही हैं। फॉर्म भरने से लेकर उम्र सीमा तक पर बात होगी। पहले एक हजार में फॉर्म भरे जाते थे, अब पचास-सौ रुपये में भरे जा रहे हैं। राज्य के लोग शिक्षित हों, अपने पैरों पर खड़े हों, उनका बौद्धिक विकास हो, इस दिशा में सरकार काम कर रही है।
आदिवासी-मूलवासी को मिले इस श्रेणी की नौकरी
सीएम ने कहा कि राज्य सरकार का प्रयास है कि सूबे में तृतीय और चतुर्थ वर्गीय पदों पर शत-प्रतिशत नौकरी मूलवासी, आदिवासी को मिले। अब पीछे मुड़कर देखने से कुछ नहीं होगा। राज्य के सवा तीन करोड़ लोगों के प्रति हमलोग कमिटेड हैं और इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।पूर्व सरकार में हुई शिक्षक बहाली में बाहरी आ गए
शिक्षक बहाली में बाहरी लोगों का हुआ नियोजन
मुख्यमंत्री ने नियोजन नीति को लेकर विपक्ष पर भी निशाना साधा। आरोप लगाया कि विपक्ष ने झारखंड के जड़ में दीमक लगाने का काम किया। शिक्षक बहाली में बाहरी लोग आ गए। जिन्हें यहां की संस्कृति और भाषा का ज्ञान नहीं था। सीएम ने कहा कि सरकार का ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों पर ध्यान है। ये बच्चे रेल, आर्मी, बैंक की बहाली में शामिल होते हैं। मेरिट के बदौलत नौकरी पाते हैं। लेकिन, केंद्र ने क्या किया सभी ने देखा। मजबूरन बेरोजगारी का दवाब राज्य पर पड़ा।
सत्ता पक्ष और विपक्ष में होती रही तकरार
नियोजन नीति के रद्द होने का मुद्दा शांत नहीं हो रहा है। शीतकालीन सत्र में विपक्षी दल भाजपा के विधायक इस मुद्दे पर लगातार सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। दूसरी ओर सत्ता पक्ष इसके पीछे भाजपा का षड्यंत्र बता रही है। सत्र के तीसरे दिन भी भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही ने नियोजन नीति पर चर्चा करने की स्पीकर से मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार से यह सवाल होना चाहिए कि ऐसी नीति क्यों बनाई जिसे न्यायालय से रद्द किया गया।
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