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यथार्थ, संवेदना और नूतन दृष्टि से बनती हैं कविताएं

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रांची, वरीय संवाददाता। कवि व पत्रकार प्रणव प्रियदर्शी की कविता संग्रह ‘अछूत नहीं हूं मैं का लोकार्पण रविवार को रांची प्रेस क्लब में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक प्रियदर्शी ने की। प्रमुख वक्ताओं में डॉ ऋता शुक्ल, विद्याभूषण, शंभु बादल, माया प्रसाद, पंकज मित्र और नीलोत्पल रमेश शामिल थे। वक्ताओं ने कहा कि प्रणव की कविताएं यथार्थ, संवेदना और राजनैतिक दृष्टि से युक्त हैं। कविताएं यथार्थ, संवेदना और नूतन दृष्टि से ही बनती हैं।

साहित्यकार डॉ ऋता शुक्ल ने कहा कि प्रणव की कविताएं अपने आसपास के सरोकार को उकेरती हुई विस्तृत फलक पर उतरती हैं। शंभु बादल ने कहा कि प्रणव साधरण के असाधारण कवि हैं। वरिष्ठ साहित्कार विद्याभूषण ने कहा कि हर समय का अपना-अपना यथार्थ होता है। इस संग्रह में समय के यथार्थ को बारीकी से उकेरने का प्रयास किया गया है। माया प्रसाद ने कहा कि संग्रह की कुछ कविताएं चौंकाती हैं तो कुछ अनोखे आस्वाद से भर देती हैं। नीलोत्पल रमेश ने कविताओं के हरेक पक्ष पर अपनी बातें रखीं। वहीं, पंकज मित्र ने कई कविताओं की पंक्ति को पढ़कर उनकी व्याख्या की।

इस दौरान सुशील अंकन, नीरज नीर, सरोज झा झारखंडी, सुनील सिंह बादल, सदानंद सिंह यादव और रजनी शर्मा चंदा ने कविताओं का पाठ भी किया। कार्यक्रम की शुरुआत महाकवि विद्यापति की भगवती वंदना-जै जै भरवि असुर भयाउनि… गाकर की गई। इसका गायन चंचल झा और बांसुरी वादन हर्ष मोहन झा ने किया। स्वागत भाषण कवि डॉ कृष्ण मोहन झा ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुक्ति शाहदेव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन उत्पल कुमार ने किया। मालूम हो कि बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने इस किताब की पांडुलिपि का चयन प्रकाशन अनुदान योजना के तहत किया था।

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