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Gandhi-Godse-गांधीजी की शहादत दिवस पर पहली बार दिखा गोड्से का विचार

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Gandhi-Godse-गांधी की शहादत दिवस पर पहली बार दिखा गोड्से का विचार
गोड्से और उसके वकिलों के किताबों के पन्नों से कराया अवगत
देश के लिए शहादत देनेवालों के किए कार्यों को नहीं भुला सकती भारत की जनता

गांधीजी पर गाए गए मशहूर लोक गायिका चंदनतिवारी की आवाज

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पूरा भारतवर्ष आजादी का 75वां वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे में महात्मा गांधी के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भारत को एकसूत्र में पिरोकर जिस प्रकार गांधी ने देशवासियों में जोश भरा और देश अंतत गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ। लेकिन 30 जनवरी 1948 में नाथुराम गोड्से नामक व्यक्ति ने उन्हें तीन गोलियां मारी। जिससे गांधीजी की मृत्यू हो गई। उनकी मृत्यू के बाद देश न सिर्फ एक मजबूत विचारधारा को खो दिया बल्कि संपूर्ण विश्व ने भी एकता का पाठ पढ़ानेवाले महापुरूष को खो दिया।

उम्मीदों के अनुरूप नहीं मिला बापू का सम्मान
बापू के निधन को लेकर जिस प्रकार के आयोजन और उनकी प्रेरणा को जनजन तक पहुंचनी चाहिए थी। वह अब राजनीतिक कारण के भंवरजाल में फंस गई। ऐसा नहीं है कि बापू को श्रद्धांजली नहीं दी गई बल्कि ऐसे महान व्यक्तित्व के लिए जो आयोजन होने चाहिए थे वे नहीं दिखे। शाम के बाद टीवी चैनल ने बापू की जीवन गाथा और उनके आंदोलनों पर चर्चा तो काफी कम की। लेकिन इनके हत्यारे नाथूराम गोड्से के बयान ,हत्यारे के वकील की सोच के साथ मोटे मोटे किताबों में नाथुराम गोड्से के बारे में कहे गए वचनों को सार्वजनिक किए गए। इसमें कुछ किताब लेखकों के ऐसे तथ्य निकाले गए जो उनकी निजी जिंदगी के होंगे। लेकिन इसे अब जनमानस तक पहुंचाने की कोशिश की गई। ऐसे में अब समाज के प्रबुद्ध लोगों को अब विचार करना चाहिए कि देश कि दिशा अब किस ओर जानी चाहिए। क्या अब हत्यारे की जीवन गाथा और सोच से देश को अवगत होना चाहिए या फिर महात्मा गांधी के आंदोलनों से प्रेरणा लेकर देशभक्ति के मार्ग पर चलान चाहिए।

गांधीजी के ये रहे प्रमुख आंदोलन-जिन्हें नहीं भुलाया जा सकता
दांडी मार्च
अंग्रेज सरकार ने जब वर्ष 1930 में नमक पर टैक्स लगा दिया तब महात्मा गांधी ने जोरदार आंदोलन छेड़ा था। जिसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए गांधी समेत 78 लोगों ने साबरमती आश्रम से समुद्र तट तक के गांव दांडी तक पैदल यात्रा (390 किलोमीटर) की। 12 मार्च को शुरू हुई यात्रा 6 अप्रैल 1930 तक यानी 24 दिन चली। गांधी जी की इसी आंदोलन के बाद अंग्रेजो ने नमक से टैक्स वापस ले लिया।

चंपारण सत्याग्रह आंदोलन
गांधीजी ने किसाने से नील की खेती करानेवाले किसानों के अत्याचार के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह की शुरूआत 1917 में किया था। इसके लिए गांधीजी ने बिहार के चंपारण जिले में सत्याग्रह किया। गांधी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह आंदोलन था। जिसके बाद पूरे देश के लोगों ने गांधीजी को समर्थन दिया और आंदोलन सफल रहा।

खेड़ा आंदोलन
जब गुजरात का एक गांव खेड़ा बाढ़ की चपेट में आई तब स्थानीय किसानों ने शासकों से कर माफ करने की अपील की थी। इस पर गांधी ने एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया और किसानों ने करों का भुगतान न करने का संकल्प लिया। गांधीजी के आंदोलन के कारण वर्ष 1918 में सरकार ने अकाल समाप्त होने तक राजस्व कर के भुगतान की शर्तों में ढील दे दी थी

रॉलेट एक्ट का विरोध
आजादी के आंदोलनों को दबाने को लेकर अंग्रेजों ने 1919 में रॉलेट एक्ट लाया था। इसे काले कानून कहा जाने लगा। इस कानून में वायसरॉय की प्रेस को नियंत्रित करने, किसी भी समय किसी भी राजनीतिज्ञ को अरेस्ट करने के साथ ही बिना वांरट किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देने का प्रावधान था। जिसका गांधी के नेतृत्व में पूरे देश ने एक सुर में इसका विरोध किया।

असहयोग आंदोलन
गांधीजी के नेतृत्व में ब्रिटिस सरकार के राष्ट्र वापस लेने की योजना बनाई गई। वर्ष 1920 में इसे असहयोग आंदोलन का नाम दिया गया। इस आंदोलन में गांधीजी के एक पुकार से पूरा देश इकठ्ठा हो गया और आजादी का आंदोलन जोर पकड़ा। इसी आंदोलन से भारतीय स्वतंत्रता की गति तेज हुई थी।—

इसे देखिए–https://www.aajtak.in/programmes/black-and-white/video/sudhir-chaudhary-show-khalistan-flag-in-australia-why-godse-killed-mahatma-gandhi-and-more-analysis-1626626-2023-01-30